
हिन्द महासागर की लहरों के बीच बसा छोटा सा देश मालदीव, इन दिनों भारत की विदेश नीति का हॉटस्पॉट बना हुआ है। 1200 द्वीपों में फैला यह मुस्लिम बहुल देश भले ही क्षेत्रफल और जनसंख्या के लिहाज़ से छोटा हो, लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भूमिका बहुत बड़ी है।
26 जुलाई 2025 को मालदीव ने अपना 60वां स्वतंत्रता दिवस मनाया — और इसी मौके पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया। यह पीएम मोदी का मालदीव का तीसरा दौरा था, लेकिन इस बार हालात पहले जैसे नहीं थे।
चीन की बढ़ती मौजूदगी, ‘इंडिया आउट’ कैंपेन, और राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू की बदली हुई रणनीति ने इस यात्रा को सिर्फ एक डिप्लोमैटिक विज़िट नहीं रहने दिया — ये एक बड़ा संदेश था। भारत ने क्यों अब तक संयम रखा? और आखिर क्यों यह छोटा सा द्वीपीय देश हमारी सुरक्षा, व्यापार और रणनीति के लिए इतना अहम है?
चलिए, इस पूरे गेमप्लान को समझते हैं — इतिहास, भूगोल और राजनीति के लेयर खोलते हुए।
मालदीव: 1200 द्वीपों वाला “बिखरा हुआ देश”
-
मालदीव को दुनिया का सबसे बिखरा हुआ देश कहा जाता है।
-
इसकी आबादी महज़ 5.21 लाख है और एक द्वीप से दूसरे पर जाने के लिए फेरी का सहारा लेना पड़ता है।
-
मालदीव ने 26 जुलाई 1965 को आज़ादी हासिल की और 2008 में इस्लामिक गणराज्य बना।
मोदी का तीसरा दौरा और बदली हुई डिप्लोमेसी
-
2023 में सत्ता में आए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू के बाद पीएम मोदी मालदीव पहुँचने वाले पहले विदेशी नेता बने।
-
मुइज़्ज़ू की जीत में “India Out” कैंपेन अहम रहा, फिर भी उन्होंने मोदी को 60वें स्वतंत्रता दिवस का मुख्य अतिथि बनाया।
-
मुइज़्ज़ू ने पहले चीन, यूएई और तुर्की का दौरा किया था, लेकिन अब भारत से फिर रिश्ता सुधारने की कोशिश।
भारत ने क्यों दिखाया संयम?
1. भौगोलिक लोकेशन
-
मालदीव हिन्द महासागर के उस रास्ते पर है जहाँ से भारत को ऊर्जा की सप्लाई होती है।
-
यहाँ की स्थिति मैरीटाइम सिक्योरिटी के लिहाज़ से बेहद अहम है।
2. चीन की घुसपैठ
-
मालदीव ने चीन के साथ FTA किया और Belt and Road Initiative में शामिल है।
-
चीन वहाँ नेवी बेस और फ्रेंडशिप ब्रिज जैसे प्रोजेक्ट्स में लगा है।
3. सुरक्षा और रणनीतिक मजबूरी
-
अगर चीन को मालदीव में मज़बूत पकड़ मिलती है तो भारत के लिए यह सुरक्षा खतरा होगा।
-
चीन और अमेरिका दोनों की मालदीव में दिलचस्पी भारत के लिए दोहरी चुनौती है।
‘India Out’ से ‘India In’ तक का सफर
-
मुइज़्ज़ू ने कहा था कि 10 मई के बाद कोई भारतीय सैनिक मालदीव में नहीं रहेगा।
-
चीन के साथ 20 समझौते और भारत को चुनौती देने वाली भाषा, लेकिन आर्थिक संकट के चलते भारत से मदद ली।
-
भारत ने जब मालदीव को डिफॉल्ट से बचाया, तभी से संबंधों में बदलाव शुरू हुआ।
रणनीति: दोस्ती से ज़्यादा ज़रूरत
-
भले ही मुइज़्ज़ू भारत के दोस्त न हों, लेकिन भू-राजनीति ने उन्हें मजबूर कर दिया है।
-
थिंक टैंक ORF और अनंता सेंटर के विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के लिए मालदीव का “कंट्रोल में” रहना ज़रूरी है, प्यार में नहीं।
इतिहास भी रहा है गवाह
-
1988 में भारत ने सेना भेजकर मालदीव सरकार को तख्तापलट से बचाया।
-
2018 में जब वहाँ पीने के पानी की कमी हुई, तो भारत ने तुरंत जल सहायता भेजी।
-
हर बार भारत ने पड़ोसी धर्म निभाया, चाहे राजनीतिक स्थिति कुछ भी रही हो।
छोटा देश, बड़ी पॉलिटिक्स!
मालदीव भले छोटा है, लेकिन इसका भू-राजनीतिक महत्व बेहद बड़ा है।
भारत अगर संयम दिखा रहा है तो उसकी वजह सिर्फ कूटनीति नहीं, रणनीतिक विवेक है।
“इश्क़ नहीं आसान, बस इतना समझ लीजिए, एक द्वीप है मालदीव… और पचास चालें चीन की भी!”
रुद्रप्रयाग में क़हर की बारिश! केदारघाटी में फटा बादल, घर बने मलबे का ढेर